Hindi Typing Test - भारत के अग्रणी नेता लोकमान्य तिलक
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लोकमान्य तिलक और स्वराज्य का संघर्ष
भारत देश के आन्दोलनों के अग्र नेताओं में लोकमान्य तिलक का नाम अग्रणी है। जिनका राजनीतिक मंत्र "स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे मैं लेकर छोडूंगा"
, अधिकांश सजग भारतीयों के होठों पर था। तिलक वह पहले नेता थे, जिन्होंने राजनीतिक आन्दोलन को शक्तिशाली बनाने के लिए धार्मिक जोश का प्रयोग किया।
वे कांग्रेस के उग्रवादी नेता, कर्मठ और साहसी सेनानी थे, जिन्होंने अपनी अनवरत साधना और महान बलिदान के द्वारा भारतीय स्वाधीनता के भव्य भवन की नींव डाली। वे जीवन के प्रत्येक पहलू पर खरे उतरे, उन्होंने आदर्श और यथार्थ दोनों का निर्वाह किया। तिलक का जीवन एक प्रेरणा था, जिसने लाखों भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
तिलक की स्वराज्य की धारणा मौलिक और सकारात्मक थी। उनके मतानुसार, व्यक्ति के लिए स्वराज्य का अर्थ था व्यक्ति को स्वधर्म पालन की स्वतंत्रता। उनका मानना था कि स्वराज्य केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म, संस्कृति और परंपराओं के अनुसार जीवन जीने का अधिकार होना चाहिए।
एक राजनीति प्रणाली के रूप में उनके स्वराज्य का अर्थ था धर्मराज्य की स्थापना। धर्मराज्य का अभिप्राय एक राजनीतिक व्यवस्था से है जो इस धर्मराज्य पर आधारित हो और जिसका उद्देश्य धर्म का रक्षण तथा पोषण हो। तिलक के अनुसार, यह केवल शासन का कार्य नहीं था, बल्कि यह सामाजिक और धार्मिक जीवन को सही दिशा देने का कार्य भी था।
तिलक का यह विचार भारतीय समाज के पारंपरिक मूल्यों और संस्कृति को समर्पित था। उन्होंने देखा कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। उनके विचारों ने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी और भारतीयों को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक किया।
तिलक की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने भारतीय समाज को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी। उनका कहना था कि हम तभी स्वराज्य प्राप्त कर सकते हैं जब हम अपने भीतर शक्ति और आत्मविश्वास पैदा करेंगे। उन्होंने शिक्षा, संस्कृति और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा दिया और भारतीयों को यह अहसास दिलाया कि आत्मनिर्भरता ही असली स्वतंत्रता है।
तिलक ने भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत की और उन्हें समझाया कि केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और विचारधारा के पुनर्निर्माण की भी आवश्यकता है। उनके विचारों का प्रभाव इतना गहरा था कि उन्होंने कांग्रेस को एक नए दिशा में मार्गदर्शन किया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर "उग्रवादी" विचारधारा का समर्थन किया और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष को तेज किया।
तिलक के योगदान को केवल भारतीय राजनीति तक सीमित नहीं किया जा सकता। उनका संघर्ष और उनका संदेश पूरी दुनिया में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गया। उनका आदर्श और संघर्ष भारतीयों को प्रेरित करता रहा और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।
उनके विचारों का प्रभाव उनके बाद आने वाली पीढ़ियों पर भी पड़ा। उनका आदर्श आज भी हमें प्रेरणा देता है और हमें अपने अधिकारों और कर्तव्यों का सही तरीके से निर्वाह करने की प्रेरणा देता है। तिलक का यह संदेश हमेशा याद रखा जाएगा कि "स्वराज्य केवल हमारा अधिकार नहीं, बल्कि यह हमारा कर्तव्य भी है।" उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता, और उनका स्थान भारतीय इतिहास में हमेशा प्रमुख रहेगा।
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