Hindi Typing Test - गणेश जी की कहानी
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गणेश जी की कहानी
एक छोटा छोरा अपने घर से खेलने गया। रास्ते में गणेश जी मिले। गणेश जी बोले, "छोरा कहां जा रहा है?" छोरे ने कहा, "मेरी मां से लड़ाई हो गई है, मैं गणेश जी के पास जा रहा हूँ।" गणेश जी ने सोचा, "यह तो मेरे नाम से जा रहा है, इसे कुछ हो गया तो मेरा नाम खराब हो जाएगा।" गणेश जी बालक के रूप में उसके घर गए। गणेश जी बोले, "छोरा कहां जा रहा है?" छोरे ने कहा, "विन्दायक जी से मिलने जा रहा हूँ।" गणेश जी बोले, "मैं ही विन्दायक हूँ।" छोरा बोला, "नहीं, मैं नहीं मानता, आप विन्दायक नहीं हो।" गणेश जी बोले, "कुछ भी मांग ले।"
छोरा बोला, "मैं क्या मांगूं? आप जो भी देंगे, वही मांग लूंगा।" गणेश जी ने कहा, "पलंग पर बिछाकर सोने के लिए, गजराज को दाल-भात, फल, गुलाब के फूल, मुठ्ठी भर खाण्ड और फरसन वाला एसी मांग ले।" विन्दायक जी बोले, "छोरा, तू तो सब कुछ मांग ले, ऐसा ही होगा।"
छोरा घर पर आया, देखा तो एक छोटी सी बिननी पलंग पर बैठी है और घर में धन हो गया। लड़का अपनी मां से बोला, "मां, विन्दायक जी ने कितना दिया।" मां खुशी से बोली, "वाह! विन्दायक जी ने मेरे लड़के को इतना धन दिया, अब हम सभी को धन दे।"
गणेश जी की कहानी और उनके आशीर्वाद से हर कोई समृद्ध हो सकता है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि यदि श्रद्धा और विश्वास से कुछ मांगा जाए, तो वह पूरी तरह से प्राप्त होता है।
गणेश जी महाराज एक बार सेठ जी के खेत से निकल रहे थे तो उन्होंने बारह दाने अनाज के तोड़ लिए। बाद में गणेश जी के मन में यह विचार आया कि उन्होंने तो सेठ जी की चोरी कर ली। इसके बाद गणेश जी ने सेठ जी के बारह बरस तक नौकरी करना शुरू कर दिया, ताकि वह अपनी गलती का प्रायश्चित कर सकें।
एक दिन सेठानी निपट कर राख से हाथ धोने लगी। गणेश जी ने सेठानी का हाथ मरोड़ कर राख छीनकर मिट्टी से हाथ धो दिए। सेठानी सेठजी से बोलीं, "ऐसा कैसा नौकर रखा है जो नौकर जात होकर मेरा हाथ मरोड़ दिया।" सेठजी ने गणेश जी को बुलाकर पूछा, "तुमने सेठानी का हाथ क्यों मरोड़ा?" गणेश जी बोले, "मैंने तो सीख दी थी कि राख से कभी हाथ शुद्ध नहीं हो सकते। राख से घर की ऋद्धि-सिद्धि चली जाती है, और मिट्टी से हाथ धोने से ये आती है।"
सेठजी ने सोचा, "गणेश जी हैं, तो समझदार होंगे।" कुछ दिन बाद कुम्भ का मेला आया। सेठ जी ने गणेश जी से कहा, "सेठानी जी को नहला ला।" सेठानी जी नहाने लगीं, और गणेश जी ने उन्हें गोता खिलाकर नहलाया। घर आकर सेठानी ने सेठ जी से कहा, "गणेश जी ने मुझे इतने लोगों के बीच आगं घसीट कर नहला दिया।" सेठ जी ने गणेश जी से पूछा तो गणेश जी बोले, "किनारे पर बैठकर छबल रही थीं। अगले जन्म में बड़ा राजपाट मिलेगा, इसलिए नहलाया।"
सेठजी ने सोचा, "गणेश जी तो सचमुच समझदार हैं।" एक दिन घर में होम हो रहा था, और सेठ जी ने गणेश जी से कहा, "सेठानी जी को होम में बैठने के लिए बुला ला।" जब सेठानी काली आंगी पहन कर आने लगीं, गणेश जी ने आंगी फाड़ दी और कहा, "लाल आंगी पहनकर चलो।" सेठानी रूठ कर सो गईं। सेठ जी ने पूछा, "क्या बात हुई?" तो सेठानी बोलीं, "गणेश जी ने मेरी आंगी फाड़ दी।" गणेश जी बोले, "काली आंगी शुभ काम में पहनने से काम सफल नहीं होता, इसीलिए मैंने लाल आंगी पहनने के लिए कहा।"
सेठजी ने सोचा, "गणेश जी सच में सयानो हैं।" एक दिन जब सेठ जी पूजा करने लगे, पंडित जी ने कहा, "हम गणेश जी की मूर्ति लाना भूल गए।" गणेश जी ने कहा, "मुझे ही मूर्ति बनाकर विराजमान कर लो, तुम्हारा काम सफल हो जाएगा।" सेठ जी गुस्से में बोले, "तू अब तक सेठानी से मसखरी करता था, अब मेरे से भी कर रहा है!" गणेश जी बोले, "मैं मसखरी नहीं कर रहा, सच्ची बात कह रहा हूँ।"
इतना कह कर गणेश जी ने रूप धारण कर लिया। सेठ और सेठानी ने एक साथ गणेश जी का पूजन किया। पूजा खत्म होते ही गणेश जी अर्न्तध्यान हो गए। सेठ और सेठानी को बहुत दुःख हुआ कि हमारे पास गणेश जी थे, और हमने उनसे इतना काम करवाया। गणेश जी ने सपने में आकर कहा, "मैंने तुम्हारे खेत से बारह दाने अनाज के तोड़ लिए थे, और इस दोष को उतारने के लिए काम किया था।"
इस प्रक्रिया से सेठजी की करोड़ों की माया हो गई। हे गणेशजी महाराज! जैसा उस सेठ जी को दिया, वैसा सबको देना।
जय गणेश जी की!
कहानी का कहता न सुनता न, हुक्म करता न, अपना सारा परिवार न दीजो।
जय गणेश जी की!
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