Hindi Typing Test - चौथ माता इतिहास एवं चमत्कार
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चौथ माता का इतिहास और मन्दिर
शिव भक्त राजा बीजल के पराक्रमी पुत्र महाराज श्री भीम सिंह जी ने आज से करीब 800 वर्ष पूर्व बरवाड़ा से 15 किमी दक्षिण की तरफ स्थित पचाला नामक स्थान से श्री चौथ माताजी की प्रतिमा लाकर बरवाड़ा के पास स्थित अरावली श्रृंखला की एक उंची पहाड़ी पर स्थापना करवाकर एक छोटासा मन्दिर भी बनवाया।
बरवाड़ा में चौथ माता जी की प्रतिमा स्थापित होने के बाद इस गांव का नाम चौथ का बरवाड़ा हो गया। महाराज श्री भीम सिंह जी ने ही अपने पिता की स्मृति में गांव के बाहर एक विशाल छतरी का निर्माण करवाकर शिवलिंग की स्थापना करवायी तथा पास ही एक तालाब भी बनवाया। छतरी आज भी बीजल की छतरी तथा तालाब माताजी का तालाब के नाम से प्रसिद्ध है। तालाब की पाल पर चढ़ते ही लबालब भरे तालाब, बीजल की विशाल छतरी व माताजी की पहाड़ी का विहंगम दृश्य देखकर यात्री भावविभोर हो जाते हैं।
चौथ का बरवाड़ा सवाईमाधोपुर-जयपुर रेलवे मार्ग पर सवाईमाधोपुर से चलने पर 15 किमी की दूरी पर दूसरा स्टेशन पड़ता है। चौथ का बरवाड़ा में चौथ माताजी के साथ गणेश जी की प्रतिमा भी प्रतिष्ठापित हैं। चौथ गणेश की प्रतिमा साथ-साथ होने से इस स्थान का विशेष चमत्कार है। माताजी के मन्दिर में भैरव जी महाराज भी विद्यमान हैं।
चौथ का बरवाड़ा में प्रतिवर्ष माह सुदी चौथ से अष्टमी तक माताजी का विशाल मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लाखों यात्री आते हैं। चौथ माताजी के मन्दिर में सैकड़ों वर्षों से घी की अखण्ड ज्योति जलती आ रही है।
महाराज श्री भीम सिंह जी के देवी की उपासना नहीं करने वाले कमजोर उत्तराधिकारियों पर राठौड़ों ने उस समय आक्रमण किया, जब माताजी के नीचे वाली बस्ती में अक्षय तृतीया सोमवार को एक बारात प्रवृत्त हो रही थी। सम्पूर्ण बारात मारी गई थी। इसी वजह से आखातीज को बरवाड़ा ठिकाना और इसके अधीन आने वाले गांवों में माताजी की आंट पड़ गई।
आखातीज का आज भी ठिकाना बरवाड़ा व इसके अधीन आने वाले गांवों में शादिविवाह नहीं होते हैं। यहां तक कि घर में कढ़ाई भी नहीं चढ़ती। उस अक्षय तृतीया को सोमवार था, सो आज भी सोमवार को बहूबेटी को बाहर नहीं भेजते हैं।
आज से करीब 200 वर्ष पूर्व माताजी के परम भक्त सारसोप ठिकाने के जागीरदार महाराज श्री फतेह सिंह जी ने जयपुर और बूंदी नरेश के मध्य होने वाले युद्ध में जयपुर नरेश की तरफ से युद्ध लड़ा और अदम्य वीरता का प्रदर्शन किया था।
जय चौथ माता की!
चौथ माता के चमत्कार और युद्ध की कहानी
कहावत है कि माताजी के प्रताप से उनका मुण्ड रहित धड़ ही किमी तक युद्ध करता रहा। फतेह सिंह जी के योग्य एवं सबल माताजी के परम भक्त उत्तराधिकारियों के काल में ग्वालियर और जयपुर रियासत के मध्य युद्ध होना तय हो गया। तो ग्वालियर के महाराज होल्लक मल्लार राव ने अपनी फौजें सवाईमाधोपुर इकट्ठा कर लीं और युद्ध करने के लिए फौज आगे बढ़ी। तब बरवाड़ा दरबार ने उसे रोक दिया और मल्लार राव के पास कहलवा भेजा कि "बरवाड़ा युद्ध करना चाहता है।" मल्लार राव ने जवाब दिया:
पान की बीड़ी चाबकर थूकत लागः बार।
गढ़ बरवाड़ा भेद द्यूम्हारी नाम मल्लार।
और युद्ध के लिए आ जाते हैं। दो दिन तक भयंकर गोलाबारी हुई, जिसके निशान गढ़ की दीवारों पर आज भी मौजूद हैं। बरवाड़ा दरबार ने उस समय चौथ माता की आराधना की, तो माताजी का ऐसा चमत्कार हुआ कि मल्लार राव को गढ़ की दीवारें धधकते हुए तांबे की लगीं। कंगूरे पर माताजी का खूंखार रूप झलकने लगा, जिसे देखकर मल्लार राव घबरा गया। उसने अपनी हार मान ली और बिना युद्ध किए ही जयपुर दरबार से वापिस चला गया।
चौथ का बरवाड़ा के अन्तिम नरेश महाराज श्री मानसिंह जी द्वितीय विश्वयुद्ध में युद्ध करने गए थे। वहां पर चारों तरफ दुश्मनों से घिरे थे, तो चौथ माताजी की आराधना करते ही माताजी साक्षात् रूप से प्रकट हुई और बोलीं:
"बेटे मान सिंह, घबराओ नहीं, बहादुरी से लड़ो।"
युद्ध में माताजी साक्षात उनके साथ रहीं।
महाराज मानसिंह जी युद्ध जीतकर बरवाड़ा पधारे और खुशी में सन् 1947 में तालाब के पूर्व में एक भव्य शिव मन्दिर बनवाया, जिसमें विशाल शिवलिंग की स्थापना करवाई। ऐसा शिवलिंग आसपास देखने को नहीं मिलता। यह भव्य मन्दिर भी बरवाड़ा का एक दर्शनीय स्थल है।
जय चौथ माता की!
चौथ माताजी के चमत्कार एवं उनके प्रेरणादायक प्रसंग
आज से 100 वर्ष पूर्व चौथ माताजी के मन्दिर पर भंयकर बिजली गिरी थी। उस समय मन्दिर में व्यक्ति और कन्हैयालाल जी ब्रह्मचारी मौजूद थे। बिजली गिरने से व्यक्ति बेहोश हो गए और सभी का जीवन संकट में पड़ गया था। तब ब्रह्मचारी जी ने चौथ माता जी की परिघ्मा देकर सबको भभूत दी और चौथ माताजी का ध्यान करते ही बिजली का असर खत्म हो गया। बेहोश व्य भी ठीक हो गए। मन्दिर का भी कुछ नहीं बिगड़ा। बिजली गिरने के निशान मन्दिर पर आज भी मौजूद हैं।
पखाले वाले रावजी चौथ माता को जब भी याद करते थे, उसी समय माताजी साक्षात् रूप से उनके समक्ष आ जाती थीं। वे जब पखाला से चौथ माताजी के पास कनक दण्डवत् से आते थे, तो भरी बनास नदी में भी माताजी के प्रभाव से उनका कुछ नहीं बिगड़ता था। चौथ माताजी की प्रेरणा से स्वामी मानसिंह जी रेलवे की बढ़िया नौकरी छोड़कर माह दिन में कोट से कनक दण्डवत् करते हुए आए। माताजी की कृपा से शीघ्र ही पैसा इकट्ठा करके माताजी की पहाड़ी पर सन् 1970 में जल पहचवाया।
पहाड़ी पर माताजी के मन्दिर तक जाने वाले सम्पूर्ण रास्ते में बिजली पहले से ही मौजूद है। चौथ माताजी के दरबार में पहली बार दुर्गाचंड़ी महायज्ञ श्री श्री श्री कृष्ण दास जी पंचतेरा भाई के प्रिय शिष्य श्री गंगा दास जी महाराज योगेश्वरी के द्वारा संवत् 1970 की गंगा दशमी को भक्तजनों के सहयोग से संपन्न करवाया गया। महाराज ने एक पुख्ता यज्ञशाला का निर्माण भी करवाया और चौथ माताजी के दरबार में श्री हनुमान जी के मन्दिर का निर्माण भी किया। भविष्य में दुर्गा सहस्त्र चण्डी महायज्ञ का विचार भी है।
वर्तमान में चौथ माताजी की धर्मशाला का निर्माण कार्य भी तेजी से चल रहा है। चौथ माताजी ऐसी भोली हैं कि इनसे श्रद्धा और भक्तिपूर्वक जो भी कोई कुछ मांगता है, वही उसे दे देती हैं।
जय चौथ माता की!
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